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'सिर से सीने में कभी ,पेट से पाँव में कभी ,एक जगह हो तो...
" इतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाये नाली में"
'इस विशाल प्रेम सागर को मैं अकेले कैसे पोषित करूँगी...??
"कॉन्क्रीट ,पत्थर के ये भेड़िये मुझे खा जाने को आतुर थे"
'मेरी प्रकृति, " प्रकृति प्रेमी" है ,संकीर्णता में मेरा दम घुटता है'
बेवा हुई गलियां चीखती है, और सन्नाटा अट्टहास करता है
दुर्घटना ,पेड़ और टहनी की गति
"डोर पकड़े है सिरा मिलता नही,फ़लसफी को बहस में ख़ुदा मिलता नही"
'बस ,रास्ते के पेड़, इमारतों को तेजी से पीछे छोड़ते हुए निकल गयी'
'समर्पित सभी प्रेमियों के लिए', समर्पित उस परम् प्रेयसी के लिए☺
' जैसे मेरा वर्षो से नाता हो इनसे'
'प्रेम त्याग की धूनी में रमता है'
ये शब्द शायद कम है ,इस उपकार के लिए😊